Kishkindhakanda

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तारा को श्री रामजी द्वारा उपदेश और सुग्रीव का राज्याभिषेक तथा अंगद को युवराज पद

तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥2॥ बतारा को

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सुग्रीव का दुःख सुनाना, बालि वध की प्रतिज्ञा, श्री रामजी का मित्र लक्षण वर्णन

दोहा : तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ॥4॥ तब हनुमान्‌जी ने दोनों ओर

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श्री रामजी से हनुमानजी का मिलना और श्री राम-सुग्रीव की मित्रता

चौपाई : आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥ श्री रघुनाथजी फिर

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मंगलाचरण

श्लोक : कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौशोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौसीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥ कुन्दपुष्प और नीलकमल के समान

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