सुग्रीव-राम संवाद और सीताजी की खोज के लिए बंदरों का प्रस्थान
दोहा : हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ।रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ॥20॥ तब अंगद आदि वानरों को साथ लेकर
Read Moreदोहा : हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ।रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ॥20॥ तब अंगद आदि वानरों को साथ लेकर
Read Moreचौपाई : बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई॥एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालुह जीति निमिष महुँ
Read Moreचौपाई : बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥ हे
Read Moreदोहा : प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥12॥ देवताओं ने पहले से ही उस
Read Moreतारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥2॥ बतारा को
Read Moreदोहा : कह बाली सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ।जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ॥7॥ बालि ने कहा- हे भीरु!
Read Moreकह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥ सुग्रीव ने कहा- हे रघुवीर!
Read Moreदोहा : तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ।पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाइ॥4॥ तब हनुमान्जी ने दोनों ओर
Read Moreचौपाई : आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥ श्री रघुनाथजी फिर
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